Saturday, July 17, 2010

केदारनाथ की यात्रा

उत्तराखंड में चार ऐसे प्रमुख धाम यानी तीर्थ स्थल हैं, जिनके दर्शन के लिए  भक्तों की भारी भीड उमडती है। इनके नाम हैं- केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री। केदारनाथ धाम के कपाट 18 मई से और बद्रीनाथ के कपाट 19 मई से खुल चुके  हैं।
आमतौर पर गंगोत्री और यमुनोत्री के बाद श्रद्धालु केदारनाथ की यात्रा करते हैं। उत्तरांचल के रुद्रप्रयाग जिले में है केदारनाथ। प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य, आस्था और भक्ति का संगम है केदारनाथ धाम। यहां पहुंचने के लिए आपको पहाडों की श्रृंखला के अद्भुत नजारों के बीच सर्पीली सडक से गौरी कुंड तक पहुंचना होगा। यहां से आगे 14 किमी. की यात्रा आपको पैदल ही करनी होगी। इस यात्रा के बाद जब आप केदारनाथ के पास पहुंचते हैं, तो पहाडों से उतरती मंदाकिनी का जल दूध के समान सफेद दिखाई पडता है। चौराबारी हिमनद के कुंड से निकली है मंदाकिनी नदी। केदारनाथ पर्वत शिखर के समीप है केदारनाथ मंदिर, जो समुद्र तल से 3562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह कत्यूरी शैली में बना दर्शनीय मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार जगत गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में सदाशिव प्रतिष्ठित हैं। पांच रूपों में विराजमान होने के कारण शिवलिंग पंच केदार कहलाते हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिग
 भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है केदारनाथ। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार, केदारनाथ में शिवलिंग, तुंगनाथ में बाहु, रुद्रनाथ में मुख, मध्य महेश्वर में नाभि, कल्पेश्वर में जटा के रूप में शिव की पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की जीवंत मूर्ति स्थापित की गई है। हर साल मई से अक्टूबर के बीच केदारनाथ के दर्शन किए जाते हैं। यहां नागनाथ शरदोत्सव, जोशीमठ शरदोत्सव, शिवरात्रि गोपेश्वरनंदा देवी नौटी, नवमी जसोली हरियाली, रूपकुंड महोत्सव बेदनी बुग्याल, कृष्णा मेला जोशी मठ, गौचर मेला, अनुसूया देवी आदि कई मेले आयोजित होते हैं। केदारनाथ के निकट ही गांधी सरोवर व बासुकी ताल है।
रुद्रनाथ गुहा मंदिर
मंदाकिनी और अलकनंदा नदी के बीचों-बीच स्थित है रुद्रनाथ गुहा मंदिर। यहां गुहा को एक भित्ति बनाकर बंद कर दिया गया है। आंतरिक भाग में शिवलिंग है, जिस पर जल की बूंदें टपकती रहती हैं।
कल्पेश्वर
 केदारखंड पुराण में उल्लेख है कि कल्पस्थल में दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी। कल्पेश्वर कल्पगंगा घाटी में स्थित है। कल्पगंगा का प्राचीन नाम हिरण्यवती था। दायें तट पर दूरबसा भूमि है, जहां ध्यान बद्री का मंदिर है। विशाल कल्पेश्वर चट्टान के पाद में गुहा है, जिसके गर्भ में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान हैं।
मध्य महेश्वर
 स्थापत्य की दृष्टि से यह पंच केदारों में सर्वाधिक आकर्षक है। मंदिर का शिखर स्वर्ण कलश से अलंकृत है। पृष्ठभाग में हर गौरी की प्रतिमाएं हैं। छोटे मंदिर में पार्वती की मूर्ति है। मंदिर के मध्य भाग में नाभि क्षेत्र के समान एक लिंग है। मान्यता है कि मध्य महेश्वर लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य स्वर्ग में स्थान पा लेता है। मध्य महेश्वर से 2 किमी. मखमली घास और फूलों से भरपूर ढालों को पार कर बूढा मध्य महेश्वर है, जहां क्षेत्रपाल देवता मंदिर है। इसमें धातु निर्मित मूर्ति स्थापित है। इससे आगे ताम्र पात्र में प्राचीन मुद्राएं रखी हैं। गुप्त काशी से 7 किमी. दूर काली मठ में काली मां का गोलाकार मंदिर है।
तुंगनाथ
चंद्रशिलाशिखर (3680 मीटर) के नीचे तुंगनाथ विद्यमान है। तराशे प्रस्तरों से निर्मित तुंगनाथ मंदिर लगभग ग्यारह मीटर ऊंचा है। इसके शिखर पर 1.6 मीटर ऊंचा स्वर्ण कलश है। सभा मण्डप के ऊपर गजसिंह है। यह काले रंग के पिण्डाकार शिवलिंग से सुशोभित है। इसके अलावा, यहां स्वर्ण और रजत से बनी पांच प्रतिमाएं हैं। तुंगनाथ से दस किमी. दूरी पर देवरिया ताल है। इसके जल में बद्रीनाथ शिखर मन मोह लेता है।

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